Monday, July 6, 2009


नरेश प्रेरणा की एक पुरानी कविता


मेरे शब्द


मेरे शब्दों में


सिर्फ़ नफरत नहीं है


सिर्फ़ प्यार भी


नहीं है


शारीरिक गुणवत्ता भी नहीं है


उनके शब्दों में


ऊँचे ऊँचे और


एक के बाद एक लगातार


दिखाई देने वाले


सपने हैं


हमें लगता है
हर रात एक नए युग


की शुरुआत होती है


हर तरफ सब कुछ नया


नई नीतियां


नई प्रणालियाँ


नए समझोते


बड़े प्यार से हर बड़ी समस्या से


बच के निकालने के ।


मेरे शब्दों में


नफरत है


समस्याओं के प्रति


क्रोध है


समस्याओं के दिन बा दिन बढ़ने पर


इंक़लाब का नारा बुलंद करते है


इन समस्याओं को दूर करने के लिए।


फैक्ट्रियों में काम करता


सड़कों पर कागज चुगता


और स्कूल जाते बच्चों को निहारता


हर बच्चा मेरे शब्दों की


ज़रूरत महसूस करता है


लगातार बढती उत्सुक्ताएं


समाज को समझने की


मेरे शब्दों में विद्यमान हैं।

लोगों को

समाज की वयवस्था

समझाने का मौका चाहने वाले

लाखों बेरोजगारों के

इरादे शब्दों में हैं

नौकरी लगे लोगों में

छटनी की समस्या

लगातार बढ़ रहा कम करने का समय

कभी भी नौकरी से निकलने की

सर पर लटकती तलवार

सभी समस्याओं को सुलझाने के लिए

संगठित न होने देने के सरकारी नीतियों

के खिलाफ ज़ोर डर रोष

मेरे शब्दों में।

उनके शब्दों का प्रचार प्रसार

किया जाता है

धर्म राजनीती

और पुरे मीडिया द्वारा

उनके शब्दों के पीछे

बड़ी ताक़त है

लोगों को लगता है वो कभी भी

ख़त्म न होंगे

हमेशा यूँ ही ठहाके मरते रहेंगे

लोगों को

कभी कभी एइसा भी लगता होगा

मेरे शब्द शअनिक है

और मेरे शब्दों के पीछे

बहुत कम ताक़त है?

मेरे शब्दों को अपनाने की ज़रूरत

हर अलग अलग जगह

बेहतर जीवन के लिए संगर्ष

में लगे लोग महसूस कर रहें हैं।

और मेरे शब्द

इस पुरी जनशक्ति को

संगठित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं

जिसमें आधुनिकता के खोखले

नीतियों और समझोतों को

जो हमारे मूल अधिकारों को

हमसे अलग रखने के लिए

बनाये गए हैं, को

तोड़ गिरना है।

अलग अलग जगहों से उठ कर

मेरे शब्द नए जीवन का निर्माण

करने में लगे हैं

वे जीवित रहेंगे

जब तक जीवन है

जन समूह है

और बेहतर जीवन के लिए इच्छा है

मेरे शब्द

और जन समूह

मिटा देंगे उन

शब्दों को

जो जन समूह को उनके

मूल अधिकारों ले अलग रखकर

जन समूह को तोड़कर

कमज़ोर कर

अपनी सत्ता बनाये रखते है

..................................................................... जतन से साभार, अंक १२

...............नरेश, सफ़दर की शहादत के ठीक बाद से हरयाणा में नाटक आन्दोलन को बनाने और आगे बढ़ने के लिए नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहे हैं। वे हरयाणा ज्ञान विज्ञानं समिति के राज्य सचिव मंडल के सदस्य और राज्य के संस्कृतीत विंग के कन्वीनर हैं ।

.....उन्होंने ये कविता san ८६-८७ में लिखी थी.

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