Tuesday, April 24, 2012



हिन्दी के जिन कविओं का अपने समय और बाद की कविता पर बहुत सीधा, निर्णायक और सार्थक असर रहा, रघुवीर सहाय उनमें से एक थे। उन्होंने कविता को इस योग्य बनाया कि उसकी तरफ उम्मीद से देखा जा सके : उसकी ज़रूरत महसूस हो। उनकी ऐसी अनेक स्मरणीय कविताएं हैं जिनसे इस अंधेर समय में रोशनी के कल्ले फूटते हैं। 
इनकी कुछ कवितायेँ 

औरत की ज़िन्दगी


कई कोठरियाँ थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गईथोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथाउसके बचपन से जवानी तक की कथा
-------------------------------------

प्रेम नई मनः स्थिति

दुखी दुखी हम दोनों
आओ बैठें
अलग अलग देखें , आँखों में नहीं
हाथ में हाथ न लें
हम लिए हाथ में हाथ न बैठे रह जाएँ
बहुत दिनों बाद आज इतवार मिला है
ठहरी हुई दुपहरी ने यह इत्मीनान दिलाया है।
हम दुख में भी कुछ देर साथ रह सकते हैं।
झुँझलाए बिना , बिना ऊबे
अपने अपने में , एक दूसरे में, या
दुख में नहीं, सोच में नहीं
सोचने में डूबे।
क्या करें?
क्या हमें करना है?
क्या यही हमे करना होगा
क्या हम दोनो आपस ही में
निबटा लेंगे
झगड़ा जो हममे और
हमारे सुख में है। 

आपातकाल के दौरान मनमोहन की ये कविता बहुत  प्रसिद्ध रही और आज उतनी ही कारगर है. 

राजा का बाजा बजा

ता थेई, ता था गा,
रोटी खाना खाना गा
राजा का बाजा बजा तू
राजा का बाजा बजा
आ राजा का बाजा बजा !

सच मत कह, चुप रह
स्वामी सच मत कह, चुप रह
चुप रह, सह, सह, सह, सह
राजा का बाजा बजा
आ राजा का बाजा बजा !

राशन...न...न...न...न...न
ईंधन...न...न...न...न...न
बरतन-ठन-ठन-ठन-ठन-ठन
खाली बरतन-ठन-ठन-ठन
जन गन मन अधिनायक
उन्नायक पतवार, उन्नायक पतवार
उन्नायक....
तन मन वेतन सब अपने सब अर्पण कर तू
स्वामी सब अर्पण कर तू
झट-पट कर श्रम से ना डर
श्रम से ना डर तू
आ राजा का बाजा बजा
ता थेई ताथा गा, रोटी खाना खाना गा !
राजा का बाजा बजा तू
राजा का बाजा बजा ! 

Tuesday, April 10, 2012

दोस्तों आज 11 अप्रैल है महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्मदिन
कल 12 तारिक को सफ़दर हाश्मी का जन्मदिन और राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस
परसों 13 अप्रैल को जलियावाला बाग़ हत्याकांड
14 अप्रैल को डॉभीम राव आंबेडकर का जन्मदिन
और 16 को चार्ली चेपलेन का जन्मदिन है

आइये समाज के निर्माण में इन के योगदान को याद करते हैं