मनमोहन की दो कविताएं
याद नहीं
-----
स्मृति में रहना
नींद में रहना हुआ
जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ
ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थी
याद नहीं निमिष भर की रात थी
या कोई पूरा युग था
स्मृति थी
या स्पर्श में खोया हाथ था
किसी गुनगुने हाथ में
एक तक़लीफ थी
जिसके भीतर चलता चला गया
जैसे किसी सुरंग में
अजीब ज़िद्दी धुन थी
कि हारता चला गया
दिन को खूँटी पर टांग दिया था
और उसके बाद कतई भूल गया था
सिर्फ बोलता रहा
या सिर्फ सुनता रहा
ठीक-ठीक याद नहीं
--------------------गेट लॉस्ट
मैं का ओये सुन, इत्ती देर से तेरी सुनराऊँ
इंवेंई हवा में मारे जारा हैं
व्हाट इज़ द बेसिक ऑफ योर स्टुपिड एजम्संस
इंवेंई ......... खली- पीली .......
मैं का व्हाट डू यू मीन बाई बाजारीकरण ?
तुझे पता है हम आलरेडी कित्ता सब्सीडाइस कर रहे हैं
तुझे पता है एक्सचेकर पै आलरेडी कित्ता लोड है
मैं का हाँ मैंने कमाई की है तो
पहली बार सरकार को कमाकर पैसे भी दिए हैं
हवा में बातें करता है
इंवेंई ......... खली- पीली .......
मैं का तू यहाँ का डीसी लगा है
गवर्नर लगा है तू ?
यू विल डिसाइड कि ठीक हुआ
कि गलत हुआ ?
हुआ भी कि नई हुआ ?
यू विल डिसाइड ?
मैं का कल्ले तू क्या कल्लेगा
उखाड़ ले तू क्या उखाड़ लेगा
मैं का तेरा लोकस स्टेंडाइ क्या है बे ?
जो मैं तेरे को जवाब दूंगा
मैं का तुझे जो कुछ कैना है
गिव मी इन राईटिंग
मैं का लुक डोन्ट फॉरगेट
देट यू आर जूनियर मोस्ट इन द इंस्टीटूशन
एन्ड आई एम् द फादर ऑफ़
दिस इंस्टीटूशन
मैं का 9 a (5 ) में मैंने किया
एण्ड आय एम् द टोटली एनटाईटिल्ड टू डू इट
साले की बोलती बंद हो गयी
साले लूज़र !
आउटडेटिड इडियट
साले !
सोचता है मैं इनके दस - दस पैसे के
पैम्प्लेटों से दर जाऊँगा
मैं का साले पर्चे बाँटता है
छोकरों से रात को वालराईटिंग कराता है
जिंदाबाद, मुर्दाबाद कराता है
साले, तुझे शर्म आनी चाहिये
अपने को टीचर कहता है
मैं का साले बिहारी
हमारी रोटी तोड़ता है
और हमेईं आँख दिखता है
मैं का एनफ इज एनफ
नाउ शटअप एण्ड गेट लॉस्ट
मैं का गेट लॉस्ट ऑफ़ माई ऑफिस
बास्टर्ड !
- मनमोहन
No comments:
Post a Comment