शुभा की कविता
हमेशा रहने वाले
लव मार्किट
और लव गुरु की दुनिया के बहार
प्रेम न तो बिक रहा है
न डर रहा है
कभी - कभी लगता ज़रूर है
जैसे बाज़ार सर्वशातिमान है
पर उसके तो घुटने
घसक जाते हैं
बार - बार
इन प्रेमियों को देख कर
यह लगता है
न जाति सर्वशातिमान है
न बेईमानी
बार - बार इन पर फतवे जरी किये जाते हैं
इनके कुचले गए शरीर
मिलते हैं जहाँ - तहां
फाँसी के फंदे
सलफास .....
हत्या के कितने ही तरीके
इन पर आजमाए जाते हैं
पर ये हर दिन
मर्ज़ी से प्रेम करने का
रास्ता लेते हैं
लगता है यही हमेशा
रहने वाले हैं
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