हिन्दी के जिन कविओं का अपने समय और बाद की कविता पर बहुत सीधा, निर्णायक और सार्थक असर रहा, रघुवीर सहाय उनमें से एक थे। उन्होंने कविता को इस योग्य बनाया कि उसकी तरफ उम्मीद से देखा जा सके : उसकी ज़रूरत महसूस हो। उनकी ऐसी अनेक स्मरणीय कविताएं हैं जिनसे इस अंधेर समय में रोशनी के कल्ले फूटते हैं।
इनकी कुछ कवितायेँ
औरत की ज़िन्दगी
कई कोठरियाँ थीं कतार में
उनमें किसी में एक औरत ले जाई गईथोड़ी देर बाद उसका रोना सुनाई दिया
उसी रोने से हमें जाननी थी एक पूरी कथाउसके बचपन से जवानी तक की कथा
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प्रेम नई मनः स्थिति
दुखी दुखी हम दोनों
आओ बैठें
अलग अलग देखें , आँखों में नहीं
हाथ में हाथ न लें
हम लिए हाथ में हाथ न बैठे रह जाएँ
आओ बैठें
अलग अलग देखें , आँखों में नहीं
हाथ में हाथ न लें
हम लिए हाथ में हाथ न बैठे रह जाएँ
बहुत दिनों बाद आज इतवार मिला है
ठहरी हुई दुपहरी ने यह इत्मीनान दिलाया है।
हम दुख में भी कुछ देर साथ रह सकते हैं।
झुँझलाए बिना , बिना ऊबे
अपने अपने में , एक दूसरे में, या
दुख में नहीं, सोच में नहीं
सोचने में डूबे।
क्या करें?
क्या हमें करना है?
क्या यही हमे करना होगा
क्या हम दोनो आपस ही में
निबटा लेंगे
झगड़ा जो हममे और
हमारे सुख में है।
ठहरी हुई दुपहरी ने यह इत्मीनान दिलाया है।
हम दुख में भी कुछ देर साथ रह सकते हैं।
झुँझलाए बिना , बिना ऊबे
अपने अपने में , एक दूसरे में, या
दुख में नहीं, सोच में नहीं
सोचने में डूबे।
क्या करें?
क्या हमें करना है?
क्या यही हमे करना होगा
क्या हम दोनो आपस ही में
निबटा लेंगे
झगड़ा जो हममे और
हमारे सुख में है।
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