शुभा की एक कविता
स्त्री का एकांत
गुरुओं क्या हाल बाना रखा है
आओ हम निभाती हैं स्त्री धर्म
पोंछती हैं तुम्हारा पसीना
देती हैं कन्तासमित उपदेश
कुछ समय अपना ज्ञान भूलकर देखो
कुछ समय शासन की इच्छा छोडो
कुछ समय पोषित करना सीखो
कुछ समय इस बच्ची को गोद में लो
जो तुम्हारी नहीं है
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