घर शांत है
धूप दीवारों को धीरे-धीरे गर्म कर रही है
आसपास एक धीमी आँच है
बिस्तर पर एक गेंद पड़ी है
किताबें चुपचाप है
हालांकि उनमें कई तरह की विपदाएँ बंद है
में अधजगा हूँ और अधसोया हूँ
धसोया हूँ और अधजगा हूँ
बाहर से आती आवाज़ों में
किसी के रोने की आवाज़ नहीं है
किसी के धमकाने या डरने की आवाज़ नहीं है
न कोई प्रार्थना कर रहा है
न कोई भीख माँग रहा है
और मेरे भीतर ज़रा भी मैल नहीं है
बल्कि एक ख़ाली जगह है
जहाँ कोई रह सकता है
और मैं लाचार नहीं हूँ इस समय
बल्कि भरा हुआ हूँ एक ज़रूरी वेदना से
और मुझे याद आ रहा है बचपन का घर
जिसके आँगन में औंधा पड़ा में
पीठ पर धूप सेंकता था
मैं दुनिया से कुछ नहीं माँग रहा था
मैं जी सकता हूँ गिलहरी गेंद
या घास जैसा कोई जीवन
मुझे चिंता नहीं
कब कोई झटका हिलाकर ढहा देगा
इस शांत घर को
कुछ देर के लिए
कुछ देर के लिए मैं कवि था
फटी-पुरानी कविताओं की मरम्मत करता हुआ
सोचता हुआ कविता की जरूरत किसे है
कुछ देर पिता था
अपने बच्चों के लिए
ज्यादा सरल शब्दों की खोज करता हुआ
कभी अपने पिता की नक़ल था
कभी सिर्फ़ अपने पुरखों की परछाईं
कुछ देर नौकर था सतर्क सहमा हुआ
बची रहे रोज़ी- रोटी कहता हुआ
कुछ देर मैं अन्याय का विरोध किया
फिर उसे सहने की ताकत जुटाता रहा
मैंने सोचा मैं इन शब्दों को नहीं लिखूंगा
जिनमें मेरी आत्मा नहीं है जो आततायियों के हैं
और जिनसे खून जैसा टपकता है
कुछ देर मैं एक छोटे से गड्ढे में गिरा
रहा यही मेरा मानवीय पतन था
मैंने देखा मैं बचा हुआ हूँ और साँस
ले रहा हूँ और मैं क्रूरता नहीं करता
बल्कि जो निर्भय होकर क्रूरता किये जाते हैं
उनके विरुद्ध मेरी घृणा बची हुई है यह काफ़ी है
बचे-खुचे समय के बारे में मेरा खयाल था
मनुष्य को छह या सात घंटे सोना चाहिये
सुबह मैं जागा तो यह
एक जानी-पहचानी भयानक दुनिया में
फिर से जन्म लेना था यह सोचा मैंने कुछ देर तक
अभिनय
एक गहन आत्मविश्वास से भरकर
सुबह निकल पड़ता हूँ घर से
ताकि सारा दिन आश्वस्त रह सकूँ
एक आदमी से मिलते हुए मुस्कराता हूँ
वह एकाएक देख लेता है मेरी उदासी
एक से तपाक से हाथ मिलाता हूँ
वह जान जाता है मैं भीतर से हूँ अशांत
एक दोस्त के सामने खामोश बैठ जाता हूं
वह रहता है तुम दुबले बीमार क्यों दिखते हो
जिन्होंने मुझे कभी घर में नहीं देखा
वे कहते हैं अरे आप टीवी पर दिखे थे एक दिन
बाज़ारों में घूमता हूँ निश्शब्द
डिब्बों में बंद हो रहा है पूरा देश
पूरा जीवन बिक्री के लिए
एक नयी रंगीन किताब है जो मेरी कविता के
विरोध में आयी है
जिसमें छपे सुंदर चेहरों को कोई कष्ट नहीं
जगह-जगह नृत्य की मुद्राएँ हैं विचार के बदले
जनाब एक पूरी फिल्म है लंबी
आप खरीद लें और भरपूर आनंद उठायें
No comments:
Post a Comment